कोरोना काल में मदरहुड पर दो बेहतरीन पर कतई विपरीत विचारधारा वाली फिल्में आई हैं। एक विद्या बालन की ‘शकुंतला देवी’ और दूसरी कृति सेनन, पकंज त्रिपाठी की ‘मिमी’ है। ‘शकुंतला’ ने अपनी औलाद के बजाय अपने करियर को तरजीह दी थी, पर यहां मिमी ने ‘अपनी’ औलाद की खातिर ‘अपने’ सपनों को तिलांजलि दे दी। खूबी यह रही कि दोनों ही किरदार प्रेरक हैं। किसे सही कहा जाए या गलत, उसका सीधा जवाब नहीं है। ‘मिमी’ इमोशन से लबालब है। हर किरदार के होने की ठोस वजहें हैं।
फिल्म में किरदार कई बार आपकी आंखें कर देंगे नम
‘तारे जमीं पर’ के बाद ‘मिमी’ दूसरे पायदान पर है, जिसके किरदार कई बार आंखें नम करते हैं। हाल के बरसों में बायोपिक और रीमेक फिल्मों ने सफलता और जादुई उपलब्धियों का ओवरडोज दिया। उसके बाद मनोरंजन के लिए जो जगह बची, वहां बेसिरपैर वाली एक्शन फिल्मों ने घुसपैठ कर ली थी। फैमिली, फीलिंग, निजी द्वंद्व वाली कहानियां गुम थीं। ‘मिमी’ इस लिहाज से फिल्ममेकर्स को राह दिखाती फिल्म है। हैरतअंगेज एक्शन और विजुअल से कहीं अधिक असर जज्बात का होता है।
12 साल पहले आई मराठी फिल्म का एडेप्टेशन है ‘मिमी’
‘मिमी’ 12 साल पहले आई मराठी फिल्म ‘मला आय व्हायच’ की एडेप्टेशन है। यह काम रोहन शंकर, लक्ष्मण उतेकर और समृद्धि पोरे ने बखूबी किया है। उन्होंने फिल्म की पूरी जिम्मेदारी किसी एक कलाकार पर नहीं लादी है। अगुवाई जरूर पंकज त्रिपाठी और कृति सेनन के किरदार कर रहें हैं। मगर उन्हें उतना ही भरपूर साथ सई तम्हणकर के अलावा अमरीकी कपल बने एडन व्हाईटॉक और एवलिन एडवर्ड्स का भी मिला है। एडन और एवलिन ने एक नि:संतान दंपति के गम और बेचैनी को मजबूती से पेश किया है। एवलिन इंडियन नहीं हैं, मगर हिंदी संवादों को उन्होंने पूरी मैच्योरिटी से बोला है। उनकी परफॉरमेंस ‘लगान’ की रेचल जैसी रही है।
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‘मिमी’ ऐसी मां है, जो देवकी और यशोदा दोनों है
फिल्म की ताकत इसकी लिखाई है। इनके संवादों में फिलॉसफी है। जैसे, समां जब बोलती है, ‘हम जो सोचते हैं, वो जिंदगी नहीं होती, हमारे साथ जो होता है, वो जिंदगी होती है।’ या फिर मिमी की मां का कहना, ‘बच्चा पैदा करने पर उतना दर्द नहीं होता, जितना उसके भटक जाने पर होता है।’ खुद ‘मिमी’ का अपने परिजनों का जवाब, ‘परिवार के अलावा भी पहचान है मेरी।’ भानु के तौर पर तो पंकज त्रिपाठी के संवाद हास्य, तंज और सोच से भरे हैं। वो ड्राइवर के रोल में हैं और फिल्म को ड्राइव करके ले जाते हैं। मसलन, ‘ड्राईवर का एक उसूल होता है, अपने पैसेंजर को बीच राह में कभी नहीं छोड़ता।’ मेकर्स ने किरदारों को हाजिरजवाब बनाया है। ‘मिमी’ ऐसी मां है, जो देवकी और यशोदा दोनों हैं। इन सबके चलते एक सिंपल सी कहानी में भी लगातार नए मोड़ आते रहते हैं। कई परतें जुड़ती चलीं जाती हैं। इन्हीं खूबियों के चलते फिल्म 21वें मिनट के बाद जरा धीमी होने के बावजूद फिर से पटरी पर आ जाती है। क्लाइमैक्स तक आते-आते यह फिर से फ्लॉलेस हो जाती है।
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कुछ ऐसी है फिल्म की कहानी
फिल्म अमरीकी कपल सारा (एवलिन) और जॉन (एडियन) के भारत यात्रा से शुरू होती है। राजस्थान में भानु (पंकज त्रिपाठी) से मुलाकात होती है। भानु शेखावटी की परमसुंदरी मिमी (कृति सैनन) उनके बच्चे की सरोगेट मां बनने को राजी कर लेता है। भानु और मिमी को पैसे भी मिलते रहते हैं। मिमी खुश है कि उन पैसों से वह मुंबई में अपना सपना पूरा कर सकेगी। अचानक जॉन और सारा एक वजह के चलते सबको बीच मझधार में छोड़ चले जाते हैं। यहां मिमी की दोस्त शमां (सई तम्हणकर) सामने आती हैं। अब मिमी के फैसले क्या होते हैं, फिल्म उस बारे में है। लेखकों ने ये सारे घटनाक्रम इस कदर पिरोऐ हैं कि किरदारों के फैसले सही गलत होते हुए भी किसी से नफरत नहीं होती। कोविड काल में लंबे अर्से बाद ‘मिमी’ जैसी बेहतरीन फिल्म आई है। फिल्म में रहमान का संगीत है, पर ‘दी रहमान’ मिसिंग हैं।
Source: bhaskar.com/entertainment/bollywood/news/mimi-movie-review-kriti-sanon-and-pankaj-tripathi-starrer-mimi-review-film-is-based-on-motherhood-128746217.html