सुबह जल्दी उठने के तरीके : अलार्म घड़ी का आविष्कार 1787 में लेवी हचिन्स ने किया था। न्यू हैम्पशायर, अमेरिका के निवासी लेवी ने इसे अपने उपयोग के लिए बनाया था, जो हर दिन सुबह 4 बजे अलार्म बजाती थी। काफी समय बाद अलार्म घड़ी आम लोगों के बीच प्रचलित हुई। इससे पहले लोग अपनी दिनचर्या के अनुसार प्राकृतिक संकेतों और स्वानुशासन पर निर्भर रहते थे। प्रत्येक व्यक्ति का शरीर अपने आंतरिक विज्ञान के आधार पर ही सुबह जल्दी उठने के लिए प्रेरित होता था। आइए जानें, यह कैसे काम करता है?
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सुबह जल्दी उठने के लिए लोग सबसे पहले अलार्म सेट करते हैं। कुछ लोग इसके लिए मोबाइल का उपयोग करते हैं, जबकि कुछ के पास पारंपरिक अलार्म घड़ी होती है, जो तय समय पर बजकर जगने की याद दिलाती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अलार्म घड़ियों के अस्तित्व में आने से पहले लोग सुबह कैसे जागते थे?
प्राचीन काल में समय जानने के लिए शंकुयंत्र और धूपघड़ियों का उपयोग किया जाता था, जो सूर्योदय से सूर्यास्त तक घंटों की गणना में मदद करती थीं। ज्योतिष की प्राचीन पुस्तकों, जैसे पंचसिद्धांतिका और सूर्य सिद्धांत, में रात के समय तारे देखकर समय निर्धारित करने का उल्लेख मिलता है। समय के साथ, यूनान और मिस्र में सूर्य घड़ियों का विकास हुआ, और ऊंचे स्तंभ बनाए गए जिनकी छाया से समय का अनुमान लगाया जाता था। हालांकि, उस समय अलार्म सेट करने के तरीके का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। इस रहस्य पर रॉयल मेलबर्न इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी, ऑस्ट्रेलिया ने एक शोध किया, जिसमें बताया गया कि लोग बिना अलार्म के कैसे समय पर जागते थे।
सुबह जल्दी उठने के तरीके :अलार्म घड़ी का कब हुआ अविष्कार?
अलार्म घड़ी का आविष्कार 1787 में लेवी हचिन्स ने किया था, जो अमेरिका के न्यू हैम्पशायर में रहते थे। हचिन्स ने अपने लिए एक घड़ी तैयार की, जो हर दिन सुबह 4 बजे अलार्म बजाती थी, ताकि वह समय पर उठकर नौकरी पर जा सकें। हालांकि, 1876 में ई. थॉमस ने पहली बार ऐसी घड़ी का पेटेंट कराया, जिसे किसी भी समय के लिए अलार्म पर सेट किया जा सकता था। इसके बाद ही अलार्म घड़ियां आम लोगों के लिए बाजार में उपलब्ध हुईं। लेकिन सवाल यह है कि अलार्म घड़ी के आविष्कार से पहले लोग समय पर जागने के लिए क्या उपाय करते थे? आइए जानते हैं।
ऐसे बनाते थे अलार्म घड़ी
1500 ईसा पूर्व, जब इंसानों ने सूर्य घड़ी का आविष्कार किया, तो उसी सिद्धांत पर उन्होंने एक घंटी यंत्र तैयार किया। इसमें एक बर्तन में छोटा छेद किया जाता था, जिससे वह धीरे–धीरे पानी में डूबता था, और उसके बाहरी हिस्से पर समय अंकित होता था। जैसे ही पानी समाप्त होता, बर्तन टकराकर आवाज करता और लोगों की नींद खुल जाती। इसी तरह, बालू का भी एक यंत्र बनाया गया था, जिसमें बालू गिरने के साथ समय का अंदाजा होता था। बालू खत्म होते ही यंत्र तेज आवाज करता, जिससे जागना सुनिश्चित हो जाता था।
प्राचीन काल में मोमबत्ती घड़ी का भी आविष्कार हुआ, जिसमें मोमबत्ती पर कीलें लगाई जाती थीं। जैसे–जैसे मोम पिघलती, कीलें नीचे गिरतीं और ट्रे से टकराकर जोरदार आवाज करतीं, जिससे व्यक्ति जाग जाता। हालांकि, ये सभी विधियां वैज्ञानिक रूप से उतनी सटीक नहीं थीं, जितनी आवश्यकता थी। ऐसे में लोग अक्सर समय पर उठने के लिए अपने मानसिक अलार्म और आदतों पर ही निर्भर रहते थे।
क्या है मानसिक अलार्म की साइंस?
कई बार जब आप तय कर लेते हैं कि सुबह एक निश्चित समय पर उठना है, तो अच्छी तरह से सो पाना मुश्किल हो जाता है। आप बार–बार उठकर यह जांचते रहते हैं कि अब समय कितना हुआ है। यह आपके मानसिक अलार्म का असर होता है। ऑस्ट्रेलिया की रॉयल मेलबर्न इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी में नींद और मनोविज्ञान की वरिष्ठ शोधकर्ता मेलिंडा जैक्सन के अनुसार, नींद और जागने का पैटर्न एक जैविक प्रक्रिया है, जिसे विज्ञान में होमियोस्टेसिस और सर्कैडियन रिदम कहा जाता है।
क्या है हेमियोस्टेसिस और सर्कैडियन?
होमियोस्टेसिस एक संकेत प्रक्रिया है, जिसे हमारे मस्तिष्क का हाइपोथैलेमस नियंत्रित करता है। सरल शब्दों में, जब हम देर रात तक जागते हैं या पूरी नींद से पहले उठ जाते हैं, तो हमें गहरी नींद की जरूरत महसूस होती है – यही होमियोस्टेसिस है। लाइव साइंस की एक रिपोर्ट के अनुसार, जब हमारी नींद पूरी हो जाती है, हाइपोथैलेमस संकेत भेजता है कि अब जागने का समय हो गया है।
दूसरी प्रक्रिया है सर्कैडियन लय – अक्सर जब नींद नहीं आती, तो कमरे में अंधेरा कर देने से थोड़ी देर में नींद आने लगती है। लेकिन अगर कोई लाइट जला दे, तो नींद टूट जाती है। इसे ही सर्कैडियन लय कहते हैं। मेलबर्न इंस्टीट्यूट की रिसर्च टीम के अनुसार, जब अलार्म घड़ियां नहीं थीं, तब लोग सूर्योदय की किरणों के साथ जागते थे, जो उनके लिए प्राकृतिक अलार्म का काम करती थीं।
पशु–पक्षी, मुर्गे और गायों की आवाज भी थी अलार्म
मैनचेस्टर विश्वविद्यालय की प्रोफेसर शासा ने यह भी बताया कि पुराने समय में घर ध्वनिरोधी नहीं होते थे और लोग खेती पर निर्भर रहते थे। औद्योगिक क्रांति का कोई प्रभाव नहीं था। ऐसे में लोग प्राकृतिक आवाजों, जैसे पशु–पक्षियों की आवाजों पर निर्भर करते थे। उदाहरण के लिए, मुर्गे की बांग, सुबह बछड़ों को दूध पिलाने के लिए इंतजार कर रही गायों की रंभाने की आवाज, और चर्च की घंटियों की आवाज भी अलार्म घड़ी का काम करती थीं।
सुबह क्यों जागते थे लोग?
सुबह जल्दी उठना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। प्राचीन समय में इसे न केवल स्वास्थ्य बल्कि आध्यात्मिक महत्व भी दिया जाता था। मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के शोध के अनुसार, उस समय सुबह का प्रारंभिक समय आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जाता था। इसके अलावा, इसे अच्छे स्वास्थ्य और अच्छे आचरण से भी जोड़ा जाता था। लोग मानते थे कि जितना जल्दी आप बिस्तर से उठेंगे, ईश्वर उतनी ही अधिक शारीरिक शक्ति प्रदान करेंगे।